पितरों के लिए पिंडदान और श्राद्धकर्म का महत्व

हमारे शस्त्रों में पिण्ड दान एवं श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व बताया गया है, कहा जाता है कि जो व्यक्ति पितृ पक्ष के समय अपने पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं उनके पितृ तृप्त होते हैं एवं श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितरों की कृपा से घर में धन धान्य, सुख समृद्धि और शांति बनी रहती है इसलिए श्राद्ध कर्म आवश्यक है। इस वर्ष यह तिथि 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक है।

यदि पितरों के लिए किया गया पिंडदान और श्राद्धकर्म व्यर्थ होता, तो मृतक पितर स्वप्न में यह नहीं कहते कि वे दुखी हैं और उनके लिए पिंडदान किया जाए ताकि उनकी पिंड की आसक्ति समाप्त हो और उनकी आगे की यात्रा संभव हो सके। पितर कहते हैं कि उन्हें दूसरा शरीर या दूसरा पिंड मिल सके। इसी कारण श्राद्ध किया जाता है, ताकि पितर मंत्र और श्रद्धा से किए गए श्राद्ध की वस्तुओं को भावनात्मक रूप से स्वीकार कर सकें और तृप्त हो सकें।

श्राद्ध के प्रकार
श्राद्ध कई प्रकार के होते हैं, जैसे:

  1. नित्य श्राद्ध: यह श्राद्ध प्रतिदिन जल या अन्न से किया जाता है। देवपूजन, माता-पिता और गुरुजनों की पूजा को नित्य श्राद्ध कहा जाता है।
  2. काम्य श्राद्ध: जो श्राद्ध किसी विशेष कामना के साथ किया जाता है।
  3. वृद्ध श्राद्ध: विवाह या उत्सव के अवसर पर वृद्धों के आशीर्वाद के लिए किया जाता है।
  4. सपिंडित श्राद्ध: सम्मान हेतु किया जाने वाला श्राद्ध।
  5. पार्व श्राद्ध: पर्वों पर मंत्रों द्वारा किया जाने वाला श्राद्ध।
  6. गोष्ठ श्राद्ध: यह गौशाला में किया जाता है।
  7. शुद्धि श्राद्ध: पापों का नाश और शुद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध।
  8. दैविक श्राद्ध: देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
  9. कर्मांग श्राद्ध: संतति या भविष्य की पीढ़ियों के लिए किया जाने वाला श्राद्ध।
  10. तुष्टि श्राद्ध: शुभकामनाओं और भलाई के लिए किया जाने वाला श्राद्ध।

श्राद्धयोग्य तिथियाँ
श्राद्धपक्ष की तिथियाँ सबसे महत्वपूर्ण होती हैं। पूर्वज जिस तिथि में संसार से गए, उसी तिथि को श्राद्ध करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अगर किसी की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो अमावस्या को श्राद्ध करना उपयुक्त माना जाता है।

श्राद्ध के विभिन्न तिथियों के लाभ भी भिन्न होते हैं, जैसे पूर्णमासी को श्राद्ध करने से बुद्धि, शक्ति और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है, द्वितीया को श्राद्ध करने वाला व्यक्ति राजा बनता है, तृतीया को श्राद्ध करने से शत्रुओं का नाश होता है, और नवमी तिथि को श्राद्ध करने से ऐश्वर्य और अनुकूल जीवन साथी की प्राप्ति होती है।

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