भारत की ऊर्जा सुरक्षा की नई रणनीति – विशाल ऑयल रिज़र्व की ओर

“अगर कल से तेल आना बंद हो जाए तो?”
यही सवाल कई बार भारत की ऊर्जा नीतियों को झकझोर देता है। युद्ध, भू-राजनीतिक तनाव या समुद्री रास्तों में संकट — ये सब भारत की क्रूड ऑयल आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं। और इसीलिए भारत अब बना रहा है एक विशाल स्ट्रेटेजिक ऑयल रिज़र्व

क्यों ज़रूरी है यह रिज़र्व?

भारत लगभग 85% से 90% कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में जब भी तेल की कीमतें बढ़ती हैं या आपूर्ति बाधित होती है, तो बजट से लेकर महंगाई तक हर चीज़ प्रभावित होती है।

  • रेड सी में हौथी विद्रोहियों के हमले
  • रूस-यूक्रेन युद्ध
  • ईरान संकट
  • ओपेक द्वारा सप्लाई कट

इन सबके कारण भारत को हर समय खतरा बना रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि देश के पास तेल का पर्याप्त भंडार हो जो इमरजेंसी में काम आ सके।

वर्तमान स्थिति: अभी हमारे पास क्या है?

भारत के पास फिलहाल तीन जगहों पर Strategic Petroleum Reserves (SPR) हैं:

  1. विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश – 1.3 MMT
  2. मंगलुरु, कर्नाटक – 1.5 MMT
  3. पदुर, कर्नाटक – 2.5 MMT

👉 कुल क्षमता: 5.3 मिलियन मीट्रिक टन (MMT)
👉 कवरेज: सिर्फ 9–9.5 दिन का तेल स्टॉक

ये ऑयल स्टोरेज ज़मीन के नीचे चट्टानों में बनाए गए हैं जिन्हें रॉक कैवर्न कहा जाता है। इन्हें तैयार करना तकनीकी रूप से कठिन और महंगा होता है।

नया प्लान: कहां-कहां बनेंगे नए ऑयल रिज़र्व?

सरकार ने अब SPR का दायरा बढ़ाने का फैसला लिया है। आइए जानें किन स्थानों पर नया इंफ्रास्ट्रक्चर बनेगा:

🔹 बीकानेर, राजस्थान – 5.3 MMT
🔹 मंगलुरु (विस्तार) – 1.75 MMT
🔹 बीना, मध्य प्रदेश – (संभावित नया स्टोरेज, डेटा प्रतीक्षित)

इसके अलावा, पहले से मंज़ूरी मिले दो प्रोजेक्ट भी शामिल हैं:

🔸 चंडीखोल, ओडिशा – 4 MMT
🔸 पदुर (एक्सपेंशन) – 2.5 MMT

👉 इन सभी को मिलाकर कुल क्षमता होगी 17+ MMT
👉 यह भारत को देगा 30–40 दिन तक का स्ट्रेटेजिक कवर

कुल मिलाकर कितने दिन का तेल होगा?

यदि हम SPR, रिफाइनरियों में मौजूद स्टॉक और ट्रांजिट में आ रहे तेल को जोड़ें, तो भारत लगभग 100 दिनों तक अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकेगा

और इसी के साथ भारत IEA (International Energy Agency) की सदस्यता के लिए योग्यता भी हासिल कर लेगा, जिसकी शर्त है – 90 दिन का तेल कवरेज

क्या होंगे इसके फ़ायदे?

  1. आपूर्ति बाधा से सुरक्षा – रेड सी या गल्फ संकट का असर कम होगा
  2. महंगाई पर नियंत्रण – डीज़ल-पेट्रोल के बढ़ते दाम पर लगाम
  3. IEA सदस्यता की पात्रता
  4. ओपेक के दबाव से राहत
  5. स्ट्रेटेजिक लीवरेज – कच्चे तेल की ट्रेडिंग में भारत की स्थिति मजबूत

पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की योजना

सरकार चाहती है कि प्राइवेट सेक्टर भी इन स्टोरेज फैसिलिटीज़ में निवेश करे। इससे दो बड़े फायदे होंगे:

  • कॉस्ट एफिशिएंसी
  • कमर्शियल लीजिंग और ट्रेडिंग का अवसर

जापान और साउथ कोरिया जैसे देश इसी मॉडल पर चलते हैं।

चुनौतियाँ क्या हैं?

  1. लैंड एक्विज़िशन – ज़मीन पाना आसान नहीं
  2. हाई कैपिटल कॉस्ट – ₹1000-₹1100 करोड़ प्रति MMT
  3. तकनीकी जटिलताएँ – रॉक कैवर्न बनाना आसान नहीं
  4. प्राइवेट प्लेयर्स की हिचकिचाहट – रिटर्न और नियंत्रण को लेकर चिंताएं

कार्यान्वयन की स्थिति

  • Engineers India Ltd. को नियुक्त किया गया है
    – वे फिजिबिलिटी स्टडी, रिस्क असेसमेंट, एनवायरमेंटल क्लीयरेंस आदि रिपोर्ट बनाएंगे
  • इसके बाद आएगा:
    कैबिनेट अप्रूवल
    लैंड अधिग्रहण और निर्माण कार्य
    ऑयल स्टोरेज और ट्रेडिंग की शुरुआत

बाकी देश क्या करते हैं?

देशरिजर्वकवरेज
USA714 मिलियन बैरल्स95 दिन
चीन500 मिलियन बैरल्स~90 दिन
जापान500 मिलियन बैरल्स160 दिन
भारत(विस्तार के बाद) ~130+ दिन

निष्कर्ष:

भारत की यह नई रणनीति सिर्फ तेल भंडारण की नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिरता, रणनीतिक स्वतंत्रता और वैश्विक ताकत बनने की दिशा में एक अहम कदम है।

सवाल यही है — क्या हम तैयार हैं अगली वैश्विक ऊर्जा आपातकाल के लिए?