मराठा आरक्षण: हक़ की लड़ाई या राजनीति का खेल?

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर एक बार फिर हलचल मच गई है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर यह आरक्षण क्यों चाहिए और इतनी बहस क्यों हो रही है।

मराठा समाज का इतिहास बड़ा है। इस समाज ने धर्म और देश के लिए बलिदान दिए हैं। अब जब वही लोग अपने हक की मांग कर रहे हैं तो बात अलग ही हो जाती है।

कुछ साल पहले पुणे और जालना में मराठा क्रांति मोर्चा हुआ था। कोपरडी की घटना के बाद गुस्सा और बढ़ा। हाल ही में मनोज जरांगे पाटिल ने अनशन किया और सरकार को वादा करना पड़ा कि एक महीने में इस पर चर्चा होगी।

लेकिन राजनीति भी खूब हो रही है। AIMIM के नेता इम्तियाज जलील पहले कोर्ट में जाकर आरक्षण के खिलाफ याचिका डालते हैं और अब मंच पर खड़े होकर कहते हैं कि आरक्षण मिलना चाहिए। ऐसे में लोग उलझन में हैं कि भरोसा किस पर करें।

शरद पवार का नाम भी खूब आता है। वो चार बार मुख्यमंत्री रहे लेकिन इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसलिए समाज सवाल पूछता है।

कई लोग कहते हैं कि आरक्षण उसी को मिले जिसे सच में जरूरत है। संभाजीराव भेड़े गुरुजी का भी यही कहना है कि कानून और फैसले समय के साथ बदलने चाहिए। सरकार ने साफ किया है कि मराठा आरक्षण से किसी और का हिस्सा नहीं कटेगा।

फिर भी जातियों के बीच टकराव पैदा करने की कोशिशें जारी हैं। असली सवाल यही है कि क्या यह लड़ाई सच में समाज के हक के लिए है या सिर्फ राजनीति का खेल बनकर रह जाएगी।