दिल्ली में यमुना की सफाई के लिये सिर्फ पैसे की नहीं योजना को पुनर्निधारित करने की जरूरत : रिपोर्ट

नयी दिल्ली : दिल्ली में यमुना को साफ करने के नए प्रयासों के बीच, बृहस्पतिवार को जारी एक नए विश्लेषण में कहा गया है कि अधिकारियों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने और नदी में बहने वाले नालों में शोधित और अशोधित पानी के मिश्रण को रोकने की जरूरत है।

दिल्ली स्थित विचारक संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) के विश्लेषण में कहा गया है कि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सीवर कनेक्शन के बिना क्षेत्रों से अवजल इकट्ठा करने वाले टैंकर इसे नालों या नदी में न डालें।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि सभी टैंकरों में जीपीएस ट्रैकर लगाए जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अवजल को उचित उपचार और पुनः उपयोग के लिए अवजल शोधन संयंत्रों संयंत्रों (एसटीपी) तक ले जाया जाए।

उन्होंने कहा कि सीवर रहित क्षेत्रों से आने वाले अशोधित पानी को नदी के पास छोड़े जाने से पहले उपचारित किया जाना चाहिए।

नारायण ने यह भी कहा कि यमुना की सफाई में सबसे बड़ी समस्या शहर की आबादी के बारे में स्पष्ट आंकड़ों का अभाव है, जिससे यह जानना मुश्किल हो जाता है कि वर्तमान उपचार क्षमता पर्याप्त है या नहीं।

दिल्ली में वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना का 22 किलोमीटर का हिस्सा, जो नदी की कुल लंबाई का दो प्रतिशत से भी कम है, इसके प्रदूषण का 80 प्रतिशत हिस्सा है।

प्रदूषण का मुख्य कारण अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों से आने वाला अशोधित अपशिष्ट जल तथा एसटीपी और सामान्य अवजल उपचार संयंत्रों (सीईटीपी) से निकलने वाले उपचारित जल की खराब गुणवत्ता है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार, शहर में प्रतिदिन 3,600 मिलियन लीटर (एमएलडी) अवजल उत्पन्न होता है। दिल्ली में 37 एसटीपी की कुल क्षमता 3,474 एमएलडी है, जो उत्पन्न अवजल का लगभग 96 प्रतिशत है।

ये संयंत्र फिलहाल अपनी क्षमता के केवल 80 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं और केवल 2,777 एमएलडी पानी को उपचारित कर रहे हैं। बाकी अवजल बिना उपचारित किए यमुना में बह जाता है।

नारायण ने कहा कि दिल्ली सरकार ने 2017 से 2022 के बीच यमुना सफाई परियोजनाओं पर 6,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं।

इसके बावजूद, नदी प्रदूषित और गंदी बनी हुई है। यमुना की सफाई के लिए सिर्फ पैसे से ज्यादा की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए नयी और बेहतर योजना की जरूरत है।

विश्लेषण में दिल्ली में नदी के प्रदूषण में 84 प्रतिशत का योगदान करने वाले नजफगढ़ और शाहदरा नालों के लिए एक नयी योजना बनाने की मांग की गई है।