SC ने यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून पर उठाए सवाल, कहा- भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लागू धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि इस कानून के माध्यम से स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वालों की प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से कठोर बना दिया गया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि कानून ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी के धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में सरकारी मशीनरी के दखल को बढ़ाने के उद्देश्य से बनाया गया हो।

हालांकि, बेंच ने यह स्पष्ट किया कि वह फिलहाल इस कानून की संवैधानिक वैधता पर विचार नहीं कर रही है, लेकिन धर्म परिवर्तन से पहले और बाद में की जाने वाली अनिवार्य घोषणाओं पर प्रश्न उठाए हैं।

बेंच ने कहा कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है और हर व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने की आज़ादी है। किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा करना कि वह धर्म परिवर्तन से पहले और बाद में जिला प्रशासन को सूचना दे, निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।

कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट (DM) को हर धर्म परिवर्तन के मामले में पुलिस जांच का आदेश देने के लिए बाध्य करना भी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है।

इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी याद दिलाया कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भले ही 1976 में प्रस्तावना में जोड़ा गया हो, लेकिन धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा 1973 के केशवानंद भारती केस में ही माना जा चुका है।