एक कहावत है : “बहुत गयी थोड़ी रही, व्याकुल मन मत हो । धीरज सबका मित्र है, करी कमाई मत खो ।।” यह संत आशाराम बापू के लिए चरितार्थ होती प्रतीत हो रही है । आजीवन कारावास की सजा काट रहे संत आशाराम बापू जल्द ही जेल से बाहर आ सकते हैं. 11 वर्षों के बाद एक झूठे केस में सजा काट रहे आशाराम बापू को कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. आशाराम बापू को 31 मार्च तक चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत देने का आदेश दिया है. अदालत ने यह भी कहा है कि रिहाई के बाद आशाराम बापू अपने अनुयायियों से नहीं मिल सकेंगे और वह किसी भी तरीके से सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं करेंगे.
स्वास्थ्य आधार पर जमानत
विदित हो कि 2013 में जब संत आशाराम बापू जेल गए थे तो उन्हें केवल 2 प्रकार की बीमारियां थीं – 1. ट्राइजेमिनल न्यूरॉल्जिया (जिसमें असहनीय पीड़ा होती है) तथा 2. साइटिका लेकिन वर्तमान में संत आशाराम बापू को 17 प्रकार की गंभीर बीमारियां हैं । संत आशाराम बापू को 3 बार गंभीर हार्ट अटैक आ चुका है । 86 वर्ष की उम्र में एलोपैथी चिकित्सा संत आशाराम बापू के लिए हितावह नहीं है इसलिए आयुर्वेद पद्धति से उपचार हेतु न्यायालय में कई बार गुहार लगाई थी जिस पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह उल्लेख किया कि 86 वर्षीय आशाराम बापू हृदय रोग और उम्र संबंधी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं. इस कारण, उन्हें केवल चिकित्सा आधार पर राहत दी जाएगी. न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने आशाराम बापू को निर्देश दिया कि रिहाई के बाद वह अपने अनुयायियों से नहीं मिलेंगे.
2013 में आधारहीन एवं झूठे केस में दोषी ठहराया गया था
संत आशाराम बापू को 2013 में एक आधारहीन झूठे केस में दोषी ठहराया गया था. इसके बाद, 2018 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. संत आशाराम बापू ने अपनी सजा को स्वास्थ्य आधार पर निलंबित करने के लिए कई बार याचिकाएं दायर की थीं, लेकिन पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
गुजरात सरकार से मांगा जवाब
2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने संत आशाराम बापू की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने के लिए दाखिल याचिका पर गुजरात सरकार से जवाब मांगा था. वर्तमान में, संत आशाराम बापू राजस्थान के जोधपुर जेल में बंद हैं, जहां वह झूठे मामले में सजा काट रहे हैं.
पिछली बार मिली थी रिहाई
इससे पहले, अगस्त 2024 में संत आशाराम बापू को दिल संबंधी बीमारी के इलाज के लिए जोधपुर की सेंट्रल जेल से बाहर लाया गया था. उच्च न्यायालय ने उन्हें सात दिनों के लिए महाराष्ट्र के एक आयुर्वेदिक अस्पताल में इलाज कराने की अनुमति दी थी. इस दौरान, संत आशाराम बापू के साथ चार पुलिसकर्मी और दो परिचारक थे. हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि वह पुणे में एक निजी कॉटेज में रहेंगे और इलाज का पूरा खर्च, साथ ही पुलिस सुरक्षा का खर्च भी उन्हें ही वहन करना होगा.
जोधपुर हाइकोर्ट में सजा स्थगन (SOS) की प्रक्रिया चलेगी
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद जोधपुर हाइकोर्ट में सजा स्थगन (SOS) के लिए याचिका दायर की जाएगी ।