पृष्ठभूमि:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को वैध ठहराते हुए कहा कि इसमें कोई अवैधता नहीं है। बार-बार जांच में शामिल होने से इनकार करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था।
मामला:
केजरीवाल की गिरफ्तारी दिल्ली में कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में की गई थी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उच्चतम न्यायालय की सुनवाई:
उच्चतम न्यायालय ने 15 अप्रैल को केजरीवाल की याचिका पर ईडी से जवाब मांगा था। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने 17 मई को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 12 जुलाई की सूची के अनुसार न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले में शुक्रवार को अपना फैसला सुनाएगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नौ अप्रैल के आदेश में कहा था कि केजरीवाल की गिरफ्तारी में कोई अवैधता नहीं है। मुख्यमंत्री को ईडी ने धनशोधन मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किया था और उन्हें 20 जून को एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत मिली थी।
ईडी की आपत्ति:
ईडी ने केजरीवाल को मिली जमानत को चुनौती देते हुए अगले दिन दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था। ईडी का दावा था कि निचली अदालत का आदेश एकतरफा और गलत था।
सीबीआई की कार्रवाई:
केजरीवाल को 26 जून को सीबीआई ने कथित आबकारी नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में भी गिरफ्तार किया था।
निष्कर्ष:
अब सभी की निगाहें उच्चतम न्यायालय पर हैं, जो शुक्रवार को इस महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुनाएगा। यह फैसला न केवल केजरीवाल की गिरफ्तारी की वैधता को लेकर स्पष्टता प्रदान करेगा, बल्कि इसके राजनीतिक और कानूनी प्रभाव भी महत्वपूर्ण होंगे।
इस रिपोर्ट ने मामले के विभिन्न पहलुओं और आगामी फैसले की प्रतीक्षा में उत्पन्न संभावनाओं पर प्रकाश डाला है। अदालत के निर्णय के बाद स्थिति और स्पष्ट होगी।