दूध पर बढ़ता विवाद और पीछे छिपी कहानी

पिछले कुछ समय से अचानक सेहर और सोशल मीडिया पर एक ही बात सुनाई दे रही है — दूध मत पियो, दूध सेहत के लिए हानिकारक है। आश्चर्य की बात ये है कि ये राय सिर्फ कुछ एलोपैथ डॉक्टर ही नहीं, बल्कि आयुर्वेदाचार्य भी दोहराने लगे हैं। सवाल उठता है, अचानक दूध क्यों निशाने पर है?

दूध की दो किस्में: A1 और A2

असल में दुनिया में दूध दो तरह का माना जाता है — A1 और A2।

  • A1 दूध: जर्सी और फ्रिज़ियन गायों से मिलने वाला दूध, जिसे पचाना मुश्किल है और यह कई तरह की दिक्कतें खड़ी कर सकता है।
  • A2 दूध: भारतीय नस्ल की गायों का दूध, जो हल्का और सुपाच्य है। इसे दुनिया का सबसे बेहतर दूध माना जाता है।

भारतीय गायों का यही A2 दूध अब विदेशों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। अमेरिका और यूरोप में भारतीय नस्ल की “ब्राह्मण काऊ” पालकर उसी दूध को दुनिया भर में बेचा जा रहा है।

अमूल पर विदेशी नजर

जब भारत की सहकारी संस्था अमूल ने अमेरिका और फ्रांस के बाजारों में प्रवेश किया तो विदेशी कंपनियों की चिंता बढ़ गई। खबरें आईं कि अमेरिकी कंपनियों ने अमूल को खरीदने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन अमूल ने साफ मना कर दिया। यहीं से खेल बदल गया।

अमूल नहीं बिका तो दूध को ही बदनाम करने का अभियान शुरू हो गया। अब फर्क किए बिना कहा जाने लगा कि दूध ही नुकसानदेह है।

त्योहारों से पहले का पैटर्न

हर साल त्योहारों से ठीक पहले सोशल मीडिया पर मिलावटी मिठाई और नकली दूध की खबरें फैलने लगती हैं। इसका असर ये होता है कि लोग परंपरागत मिठाइयों से दूरी बना लेते हैं और उनकी जगह चॉकलेट या विदेशी पैकेज्ड उत्पाद बिकने लगते हैं।

दूध के विकल्प और बाज़ार

जब लोग दूध से दूर होते हैं तो विकल्प के नाम पर बादाम मिल्क, सोया मिल्क और कोकोनट मिल्क सामने रखे जाते हैं। गौर करने वाली बात है कि बादाम की सबसे बड़ी खेती अमेरिका में होती है, सोया ब्राजील में और नारियल इंडोनेशिया में। यानी धीरे-धीरे अगर भारतीय डेयरी परंपरा खत्म कर दी गई, तो भविष्य में दूध के नाम पर हमें विदेशी उत्पाद ही खरीदने पड़ेंगे।

पुराना अनुभव, नया खेल

कुछ दशक पहले यही खेल घी के साथ खेला गया था। कहा गया कि देसी घी हार्ट अटैक की वजह है, और लोगों को वनस्पति तेल की तरफ मोड़ दिया गया। बाद में सच्चाई सामने आई तो वही घी फिर से सेहत का खजाना बताया जाने लगा। अब वही कहानी दूध के साथ दोहराई जा रही है।


आख़िरी बात

भारत के हर पर्व और परंपरा में दूध की गहरी भूमिका है। ऐसे में अचानक दूध को “हानिकारक” बताने की मुहिम सिर्फ स्वास्थ्य बहस नहीं लगती, इसके पीछे एक बड़ा बाज़ार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी नजर आती है। असली सवाल यही है कि हम इस प्रचार में बह जाएंगे या फिर सच को परखकर अपनी परंपरा और संसाधनों की रक्षा करेंगे।