आर्थिक जिहाद का नया चेहरा – हलाल मार्केटिंग

हलाल क्या है?

हलाल का मतलब है – इस्लाम के हिसाब से सही। यानी जो चीज़ मुसलमानों के धर्म में मान्य है, उसे हलाल कहते हैं। इसके उलट जो मना है, उसे “हराम” कहते हैं।

हलाल मांस कैसे बनता है?

मांस की बात करें तो हलाल में जानवर को धीरे-धीरे गला काटकर मारा जाता है। इस दौरान कुरान की आयत पढ़ी जाती है और जानवर का खून पूरी तरह बहाया जाता है। यही तरीका हलाल कहलाता है।

आम आदमी के लिए इसका असर

जब हर जगह हलाल लाद दिया जाता है, तो दूसरे लोगों के पास विकल्प ही नहीं बचते। दुकानों और होटलों में सिर्फ हलाल मिलेगा, चाहे आप चाहें या न चाहें। यह मजबूरी धीरे-धीरे पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।

हलाल सिर्फ एक धार्मिक नियम है, लेकिन जब उसे हर चीज़ पर थोपने की कोशिश होती है, तो यह धर्म से आगे बढ़कर आर्थिक और सामाजिक दबाव बन जाता है। यही कारण है कि लोग सवाल पूछ रहे हैं – क्या सेक्युलर देश में यह सही है?


भारत में हलाल अब सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। दवाइयां, बिस्किट, कॉस्मेटिक्स, होटल सर्विसेज़ और यहां तक कि टाउनशिप पर भी हलाल की मुहर लगाई जा रही है। दिखने में यह “धार्मिक नियम” है, लेकिन असल में यह आर्थिक पकड़ बनाने और अलग व्यवस्था खड़ी करने का तरीका है।

मजबूरी या साज़िश?

बहुसंख्यक समाज के लोग कई बार बिना जाने ही हलाल सामान खरीद लेते हैं। दुकानों और रेस्टोरेंट्स में विकल्प ही नहीं रखा जाता। धीरे-धीरे हालात ऐसे बन रहे हैं कि आपके पैसे से बनी चीज़ें भी किसी और मज़हबी कानून की गिरफ्त में चली जाती हैं

सेक्युलर देश के लिए खतरा

भारत एक सेक्युलर और बहुधर्मी देश है। लेकिन अगर एक मज़हबी नियम हर जगह थोप दिया जाए, तो यह सिर्फ धार्मिक आज़ादी का मामला नहीं रहता, बल्कि बहुसंख्यक समाज के अधिकारों पर सीधा हमला बन जाता है। हलाल टाउनशिप जैसी योजनाएं समाज को बांटने और अलगाव बढ़ाने का ज़रिया हैं।

असर साफ है

  • हिंदू उपभोक्ता की पसंद छिन रही है।
  • छोटे व्यापारी भी दबाव में हलाल प्रमाणन लेने पर मजबूर हो रहे हैं।
  • अर्थव्यवस्था धर्म के नाम पर बंट रही है।

हिंदू समाज के लिए संदेश

यह सिर्फ खाने-पीने की बात नहीं है, यह आर्थिक जिहाद है। अगर बहुसंख्यक समाज जागरूक नहीं हुआ, तो कल हर ज़रूरत हलाल के नाम पर बिकेगी और आपकी पसंद का कोई मूल्य नहीं बचेगा।

रास्ता यही है

हिंदू समाज को आवाज़ उठानी होगी – “नो टू हलाल”
भारत में बाज़ार धर्म से ऊपर होना चाहिए, और उपभोक्ता की स्वतंत्रता सबसे अहम। हिंदू समाज अगर आज खड़ा नहीं हुआ, तो कल बहुत देर हो जाएगी।