क्रांति का सच: झटके में बदलाव का भ्रम

नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों की अराजक तस्वीरें भारत के कट्टरपंथी समूहों के लिए लालच का कारण बनती रही हैं। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में ऐसे ताकतें मौजूद हैं जो बार-बार यहां अशांति फैलाने की कोशिश करती हैं। रामलीला मैदान का कथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन, तीन कृषि कानूनों पर आंदोलन—पिछले दो दशकों के कुछ बड़े उदाहरण हैं। इन सबके पीछे कौन लोग और शक्तियां हैं, यह अब छुपा नहीं है: पश्चिमी औपनिवेशिक ताकतें, उनके मजहबी एजेंट और देश के भीतर छिपे सहयोगी।

दुनिया की बड़ी क्रांतियों से सबक

इतिहास गवाह है कि क्रांतियां सत्ता बदलती हैं, व्यवस्था नहीं।

  • फ्रांस (1789): पादरियों और राजा के खिलाफ किसानों और मजदूरों की बगावत ने लोकतंत्र तो दिया, लेकिन वर्षों तक खूनी अराजकता भी। चर्च को सत्ता से अलग करने के बाद वहां सेकुलरिज्म लागू हुआ, जिसका असर आज पेरिस में बार-बार भड़कती हिंसा तक दिखता है।
  • रूस (1917): जार की सरकार को गिराकर कम्युनिस्टों ने एकदलीय तानाशाही थोप दी। लोकतांत्रिक अधिकार छिन गए।
  • चीन (1949): माओ के नेतृत्व में क्रांति के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता कुचल दी गई।
  • अरब स्प्रिंग (2010): ट्यूनेशिया से शुरू होकर कई अरब देशों में तख्तापलट हुए, खून-खराबा हुआ, और अंत में अमेरिका समर्थित कठपुतली सरकारें बैठ गईं।

इन सभी जगहों पर जनता के नाम पर हुआ आंदोलन अंततः बाहरी शक्तियों का खेल निकला।

भारत में दोहराई गई चाल

अरब स्प्रिंग के बाद भारत में भी “इंडियन स्प्रिंग” आज़माया गया। यूपीए सरकार के घोटालों के बीच इंडिया अगेंस्ट करप्शन के मंच से बड़े पैमाने पर आंदोलन खड़ा हुआ। इसका नतीजा सत्ता परिवर्तन तो था, लेकिन जनता ने लोकतांत्रिक रास्ता चुना और 2014 में कांग्रेस को नकार कर नए नेतृत्व को अवसर दिया। यही वजह है कि विदेशी एजेंसियों के प्रयास आज भी जारी हैं, कभी सोशल मीडिया से, कभी कृत्रिम जनाक्रोश से।

जनता के लिए चेतावनी

  • सरकार से असंतोष का मतलब यह नहीं कि दुश्मन को दोस्त मान लें।
  • सोशल मीडिया पर मिलने वाली हर खबर पर आंख मूंदकर भरोसा न करें।
  • विदेशी पुरस्कारों या चमकदार शब्दों से प्रभावित न हों।
  • किसी आंदोलन में शामिल होने से पहले उसके असली उद्देश्यों को परखें।
  • सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना खुद के देश को कमजोर करना है।

सच्चे बदलाव क्रांति से नहीं, जागरूकता और धीरे-धीरे होने वाली सामाजिक परिपक्वता से आते हैं। भारत की ताकत यही है कि यहां बदलाव लोकतांत्रिक और स्थायी तरीके से होते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इतिहास से सीखें, विदेशी षड्यंत्रों से सावधान रहें और अपने बच्चों को सच्ची कहानियां बताएं—ताकि यह देश नेपाल या श्रीलंका की तरह अराजकता का शिकार न बने।