अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पासपोर्ट पर थर्ड जेंडर का विकल्प हटाया

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस नीति को मंजूरी दे दी है, जिसमें पासपोर्ट से थर्ड जेंडर का विकल्प हटाने का प्रावधान किया गया था। नए आदेश के बाद अमेरिकी पासपोर्ट में केवल दो ही विकल्प—मेल और फीमेल—उपलब्ध रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट पर वही लिंग दर्ज किया जाएगा, जो व्यक्ति के जन्म प्रमाणपत्र में जन्म के समय दर्ज किया गया था।

हालांकि, कोर्ट के तीन लिबरल जजों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई और कहा कि यह निर्णय जेंडर पहचान की स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है।

ट्रंप प्रशासन ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में विदेश विभाग को पासपोर्ट नियमों में बदलाव करने का आदेश दिया था। इस आदेश के तहत अब अमेरिका में जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर केवल दो लिंगों को आधिकारिक मान्यता दी जाएगी। इससे पहले बाइडेन प्रशासन ने 2021 में बिना किसी मेडिकल प्रमाणपत्र के व्यक्ति को पासपोर्ट में अपनी जेंडर पहचान चुनने की अनुमति दी थी।

1970 में अमेरिका में पासपोर्ट पर जेंडर प्रदर्शित करने की शुरुआत हुई थी। 1990 में मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर जेंडर बदलने की अनुमति दी गई थी। बाद में बाइडेन सरकार ने इसे और उदार बनाया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के बाद यह व्यवस्था बदल गई है।

अमेरिकी सेना में भी बदलाव लागू
इस नीति परिवर्तन के साथ अमेरिकी सेना ने भी घोषणा की है कि अब ट्रांसजेंडर और जेंडर डिस्फोरिया के इतिहास वाले व्यक्तियों को सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा। सेना ने कहा कि जेंडर परिवर्तन से संबंधित सभी नियोजित मेडिकल प्रक्रियाएं भी रोकी जा रही हैं। हालांकि, सेना ने यह भी कहा कि देश की सेवा कर चुके जेंडर डिस्फोरिया से प्रभावित व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाएगा।

क्या है जेंडर डिस्फोरिया?
यह एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति के जैविक लिंग और उसकी आंतरिक जेंडर पहचान में अंतर महसूस होता है, जिससे उसे मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।