Congress की नीतियों का deep analysis – क्या कांग्रेस की नीतियाँ भारत को इस्लामी राष्ट्र की दिशा में ले जा रही थीं?






हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्पष्ट बयानों ने एक बार फिर उस पुराने प्रश्न को उजागर कर दिया है जो दशकों से भारतीय जनमानस में धीरे-धीरे पनपता रहा — क्या कांग्रेस पार्टी की नीतियाँ हिंदू समाज को कमजोर करने और भारत को एक इस्लामिक झुकाव वाले राष्ट्र की दिशा में ले जाने वाली रही हैं? इस सवाल का Deep Analysis जरुरी है ।

यह कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि कई दशकों की घटनाओं और संवैधानिक प्रावधानों के विश्लेषण पर आधारित गंभीर विमर्श है।


मनमोहन सिंह का बयान: एक संकेत या नीति?

2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था — “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।
यह कथन तब भी विवादों में रहा, लेकिन आज जब कांग्रेस के घोषणापत्र में हिंदुओं की संपत्ति के पुनर्वितरण की बात आती है, तो यह बयान एक अलग ही परिप्रेक्ष्य में देखा जाने लगा है।

क्या यह सिर्फ एक ‘पोलिटिकल स्टेटमेंट’ था या उस लंबी चल रही नीति का एक हिस्सा जो बहुसंख्यक समाज की आर्थिक और सांस्कृतिक नींव को ही हिला देना चाहती थी?


संविधान के माध्यम से संतुलन या पक्षपात?

1947 में भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ। पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बना, और भारत ने खुद को सेकुलर राष्ट्र घोषित किया। लेकिन आलोचकों का मानना है कि 1950 में बनाए गए संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान शामिल किए गए जो असंतुलन पैदा करते हैं:

  • अनुच्छेद 25: धर्मांतरण को कानूनी संरक्षण दिया गया, जबकि यह स्पष्ट था कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म में यह परंपरा नहीं है — इसके विपरीत, इस्लाम और ईसाई धर्म में धर्मांतरण केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • अनुच्छेद 28: हिंदू संस्थानों को धार्मिक शिक्षा देने से रोका गया, जबकि…
  • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को मजहबी शिक्षा देने की पूरी छूट दी गई।

आर्थिक और सांस्कृतिक नियंत्रण: मंदिरों से लेकर आभूषणों तक

  • 1951: मंदिरों की आय को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया। लेकिन मस्जिदों और चर्चों पर यह नियम लागू नहीं हुआ।
  • 1995: वक्फ कानून में ऐसे प्रावधान शामिल किए गए जिससे मुस्लिम संगठन किसी भी जमीन को वक्फ घोषित कर सकते हैं — उस पर कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी जा सकती।

आज स्थिति यह है कि वक्फ बोर्ड के पास देश की तीसरी सबसे बड़ी भूमि संपत्ति है — जबकि हिंदू मंदिरों की आमदनी का उपयोग सरकारी मशीनरी तय करती है।


जनसंख्या असंतुलन और पर्सनल लॉ का पक्षपात

  • मुस्लिम और ईसाई समुदायों को पर्सनल लॉ की छूट दी गई, जिसमें बहुविवाह की अनुमति भी शामिल है।
  • 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट ने धर्म बदलकर विवाह की राह आसान की — जिसके दुरुपयोग की घटनाएँ ‘लव जिहाद’ के नाम से चर्चा में हैं।

सेकुलरिज़्म का राजनीतिक प्रयोग

1975 में आपातकाल के दौरान संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़ा गया। विश्लेषक मानते हैं कि यह केवल हिंदू पहचान को दबाने का एक राजनीतिक औजार बन गया।

1991 में सोनिया गांधी के दबाव में बना अल्पसंख्यक आयोग — एक ऐसा संस्थान जो सिर्फ मजहबी पहचान के आधार पर विशेषाधिकार देता है।
क्या यह सच्चे सेक्युलर राष्ट्र की परिभाषा में आता है?


रामसेतु विवाद और हिंदू आस्था पर चोट

2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि “राम काल्पनिक पात्र हैं”, और रामसेतु को तोड़ने की अनुमति मांगी।
क्या यह एक वैज्ञानिक परियोजना थी या हिंदू भावनाओं पर सुनियोजित हमला?


हिंदू आतंकवाद का नैरेटिव: असंतुलित कार्रवाई

2008 के बाद से कांग्रेस शासनकाल में ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द गढ़ा गया। अनेक संतों और साध्वियों की गिरफ्तारियाँ हुईं, उन्हें मीडिया में दोषी घोषित किया गया — जबकि बाद में वे निर्दोष पाए गए।

क्या यह नैरेटिव समाज को धार्मिक आधार पर बाँटने की रणनीति थी?


2024: जब घोषणा पत्र से पर्दा उठा

कांग्रेस के 2024 के घोषणापत्र में वह बात सामने आ गई, जिसे वर्षों से संकेतों में कहा जा रहा था।
घोषणापत्र में उल्लेख था कि:

“माताओं-बहनों के पास कितना सोना है इसका डेटा लिया जाएगा और संपत्ति का पुनर्वितरण किया जाएगा।”

प्रधानमंत्री मोदी ने इस विषय को जनता के सामने सहज भाषा में प्रस्तुत किया, और फिर कांग्रेस पर हमला बोला:
“तुम उसे छीनने की बात कर रहे हो अपने मेनिफेस्टो में… गुसपैठियों को बांटोगे?”


ये सवाल अब टाले नहीं जा सकते

कांग्रेस चुनाव हारती है या जीतती है — यह राजनीति का हिस्सा है। लेकिन अगर उसके छोड़कर गए हर बड़े नेता यह कह रहे हैं कि यह पार्टी हिंदुओं से घृणा करती है, तो इसे केवल संयोग नहीं माना जा सकता।

अब जब प्रधानमंत्री खुद इस विषय पर खुलकर बोल चुके हैं, तो यह राष्ट्र के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है।
क्या अब समय आ गया है कि सनातन धर्म की रक्षा और भारत की सांस्कृतिक अस्मिता की पुनर्स्थापना के लिए नीति और राजनीति दोनों बदलें?